Baba Bulleh Shah: पंजाब में बाबा बुल्ले शाह के शहर कसूर में दो अप्रैल 1902 को उस्ताद बड़े गुलाम अली खान का जन्म हुआ था. बता दे कि बड़े गुलाम अली खान के पूर्वज फाजिल पीरदाद गजनी से आकर यहां कसूर में रहे थे. बड़े गुलाम अली खान के पिता अली बख्श खान और चाचा उस्ताद काले खान भी अपने समय के अच्छे गायक रहे है, पाकिस्तान का वो महान गायक जिसका इंतजार महात्मा गांधी ने किया…
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मुंबई को बनाया ठिकाना
सरकारी अधिकारी के कारण छोड़ा अपना पाकिस्तान, मुंबई को बनाया ठिकाना. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी बड़े गुलाम अली खान के मुरीद रहे थे, पाकिस्तान में बड़े गुलाम अली खान साहब को सरकारी अधिकारी ने अपमानित किया तो उनकों इतना दुख हुआ की उन्होंने अपनी जन्मभूमि छोड़ भारत आना पड़ा।
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Baba Bulleh Shah: आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ
आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ तो बड़े गुलाम अली खान का घर पाकिस्तान के हिस्से में आ गया. उस समय भारत के गायकों को वहां सम्मान नहीं दिया जाता था. जानबूझ कर लोगों को यह समझाने का प्रयास हो रहा था कि पाकिस्तान का अपना धर्म और अपनी संस्कृति है. शास्त्रीय संगीत में खयाल और ठुमरी को भारतीय संगीत समझा जाता था वहीं गजल को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा था. संस्कृत हिंदी में राग-रागनियों के नाम थे उसे पाकिस्तानी नाम देने के प्रयत्न किया गया।
हिन्दुस्तानी गायकों को मिरासी बोला जाता था
वही पाकिस्तान में गायकों से हिंदी और संस्कृत शब्दों को खत्म करने का प्रयास चल रहा था और हिन्दुस्तानी गायकों को मिरासी बोला जाता था. इस तरह के माहौल में पाकिस्तान के अधिकारी जेडए बुखारी से बड़े गुलाम अली खान तू तू मैं मैं हो गई.
बताया जा रहा है बड़े गुलाम अली खान जेडए बुखारी के कमरे में गए तो उन्हें अलग अंदाज में कह दिया कि आप इजाजत लिए बिना कमरे में कैसे आ गए. खान साहब को बात बहुत दुख हुआ, बुखारी एक सरकारी अधिकरी थे, खान साहब ने वहीं जवाब दिया बुखारी साहब, आप जैसे बीए पास लोग पाकिस्तान में हजारों-लाखों होंगे, पर गुलाम अली एक ही हैं.
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Baba Bulleh Shah: उनका अपमान करने के लिए उनको बाहर बैठाए रखा
रेडियो पाकिस्तान के पूर्व महानिदेशक मुर्तजा सोलंकी ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि बड़े खान साहब
पाकिस्तान हिन्दुस्तानी विवाद को समाप्त करने के लिए बुखारी के दफ्तर गए थे. तब बुखारी ने उनका
अपमान करने के लिए उनको बाहर बैठाए रखा. बुखारी ने दरबान को ये कह दिया था कि बैठे रहने
दो बाहर मीरासी को . यह बात उस्ताद खान साहब ने सुन ली और पाकिस्तान में नही रहने का लिया फैसला
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इस बात से पहले भारत के व्यापारयों, भारत सरकार के आलाधिकारी ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया था
लेकिन वो आने के लिए राजी नही हुए. बाद में बुखारी से अपमानित बेअदबी के बाद साल 1957 में वो
भारत में आए और मुंबई में रहने लगे. यहां की नागरिकता भी ले ली. 23 अप्रैल 1968 को मौत हो गई.
बडे़ उस्ताद साहब को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी.
भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद उनका इंतजार करते
पाकिस्तान में बड़े गुलाम अली खान को अपमानित किया गया वही भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद
उनका इंतजार करते थे. मुंबई में बापू को राष्ट्र को संबोधित करना था. लेकिन पहले उस्ताद बड़े
गुलाम अली खान के कार्यक्रम के साथ शुरू होना था. ट्रैफिक में फंसने के कारण खान साबह लेट हो गए तो
फिर ये क्या बापू के साथ-साथ पूरा देश उनका इंतजार में बैठा रहा.
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जब खान साहब पहुंचे तो लोगों हाथ हिलाकर और तालियां बजा कर उनका स्वागत किया.
वही महात्मा गांधी की नजर खान साहब पर थी और वह समझ रहे थे इतने जरुरी कार्यक्रम में देर
होने के कारण गुलाम अली साहब शर्मिंदा हैं. खान साहब की इस परेशान के बारे में पता चलने पर
बापू ने कहा, खान साहब आप इतने हट्टे-कट्टे हैं वही मैं पतला, में आपसे लड़ नहीं सकता.
यह सुन कर खान साहब गाने लगे.