Election Commission: बसपा पार्टी बहुजन समाज का काफी समय से प्रतिनिधित्व करती है. बसपा पार्टी के संस्थापक कांशीराम छोटे तबके के लोगों को बहुजन कहते थे.
उनका कहना था कि बहुजन समाज एक हाथी की तरह विशालकाय और मजबूत है. बसपा पार्टी का नीला झंडा नीले आकाश भी प्रतीक है. आखिर क्या है सफेद हाथी के चुनाव चिन्ह की कहानी.
भारत के चुनाव पार्टियों के नेता को कम उनके चुनाव चिन्ह से ज्यादा जाना जाता है. हमारे देश में चुनाव चिन्ह केवल निशान मात्र नही होता है
बल्कि पार्टी की विचारधारा और उद्देश्य को दिखाता है. हम बात कर रहे है बसपा के चुनावी चिन्ह की.
BSP का गठन 1984 में कांशीराम ने किया था
बहुजन समाज पार्टी (BSP) का गठन 1984 में कांशीराम ने किया था. वर्तमान में पार्टी का चुनावी चिन्ह हाथी है,
इससे पहले पार्टी के उम्मीदवार चिड़िया के निशान लेकर चुनाव मैदान पर उतरे थे.
पार्टी गठन होने के शुरू में बसपा का चुनाव चिन्ह चिड़िया था. इस चिड़ियां के निशान के साथ पार्टी
चुनाव जीत जाती तो पार्टी का चिन्ह चिडि़यां रहता, वही बसपा चुनाव जीतने में असफल रही.
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पार्टी के गठन के बाद 5 साल तक लगातार हारने पर बसपा की प्रमुख नेता मायावती 1989 में पहली बार
हाथी का चुनाव चिन्ह लेकर बिजनौर से चुनाव मैदान में उतरी और चुनाव जीतकर वह सांसद बनीं.
Election Commission: हाथी का चिन्ह लेने के पीछे और भी कई कारण
अब क्योंकि हाथी पर किसी और पार्टी का अधिकार नहीं था, मांगने पर चुनाव आयोग ने उन्हें हाथी निशान दे दिया।
हाथी का चिन्ह लेने के पीछे और भी कई कारण थे. इनमें से सबसे बड़ा कारण
कांशीराम के प्रेरणास्रोत भीमराव आंबेडकर थे. बसपा पार्टी बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करती है.
कांशीराम निचले तबके के लोगों को बहुजन कहते थे. कांशीराम का कहना था कि
बहुजन समाज हाथी की तरह है जो विशालकाय और मजबूत है.
हाथी चुनने की बड़ी वजह भीमराव आंबेडकर भी थे. आजादी के बाद देश के पहले आम चुनाव में आंबेडकर की पार्टी भी लड़ी थी.
जिनकी पार्टी नाम था अनुसूचित जाति महासंघ जिसका चुनाव चिन्ह हाथी था.
लेकिन 1956 में ही बीआर आंबेडकर ने महासंघ को बर्खास्त कर दिया था.
हाथी का बौद्ध धर्म से खास रिश्ता रहा
कांशीराम को आंबेडकर की राजनीति का उत्तराधिकारी कहा जाता था. बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के बाद
कांशीराम की आम सभाओं में ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा.’ ये नारा गूजा करता था।
हाथी का बौद्ध धर्म से खास रिश्ता रहा है. अपने अंतिम समय में भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था.
14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में ऐतिहासिक समारोह में बौद्ध धर्म अपना लिया था और
6 दिसंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई थी.